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क्या आप जानते हैं कार्ल डेन्के की खौफनाक कहानी? एक साधारण इंसान का असली चेहरा!

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कार्ल डेन्के: एक खौफनाक कहानी

Famous Serial Killer Karl Denke Story (Photo - Social Media)

Famous Serial Killer Karl Denke Story (Photo - Social Media)

कार्ल डेन्के का परिचय: पोलैंड के जिएबित्से (जिसे पहले मुस्टरबर्ग कहा जाता था) में एक साधारण दिखने वाला व्यक्ति, जिसे लोग प्यार से वाटर डेन्के के नाम से जानते थे। वह एक धार्मिक इंसान था, जो चर्च में ऑर्गन बजाता था और जरूरतमंदों की मदद करता था। लेकिन 21 दिसंबर, 1924 को एक खून से लथपथ आदमी ने जब चीखते हुए भागकर बताया कि डेन्के ने उस पर हमला किया, तो शहर की शांति भंग हो गई। आइए, इस डरावनी कहानी को विस्तार से जानते हैं।


कार्ल डेन्के का प्रारंभिक जीवन

कार्ल डेन्के का जन्म 12 अगस्त, 1860 को प्रूसिया के ओबरकुंजेंडॉर्फ में एक संपन्न जर्मन किसान परिवार में हुआ। उसका बचपन सुखद नहीं था और उसे एक अजीब बच्चा माना जाता था। स्कूल में वह कमजोर छात्रों में से एक था। 12 साल की उम्र में, उसने घर छोड़ दिया, जिससे उसके परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल खत्म करने के बाद, उसने माली के रूप में प्रशिक्षण लिया और अपने जीवन की शुरुआत की। 25 साल की उम्र में, पिता की मृत्यु के बाद, उसके बड़े भाई को परिवार का घर मिला, जबकि डेन्के को कुछ नहीं मिला। उसने मुस्टरबर्ग में एक छोटा सा घर खरीदा और वहीं रहने लगा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, महंगाई के कारण उसे अपना घर बेचना पड़ा, लेकिन वह उसी इमारत में किराए पर रहने लगा। स्थानीय लोग उसे एक दयालु और धार्मिक व्यक्ति के रूप में जानते थे।


डेन्के का दोहरा जीवन

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बाहर से, डेन्के एक सामान्य व्यापारी था, जो बाजार में चमड़े के बेल्ट, सस्पेंडर, जूतों के फीते और अचार में पोर्क बेचता था। उसका मांस व्रोकला के बाजार में बिकता था, जहां उसे बूचर्स गिल्ड से लाइसेंस मिला था। उसकी दुकान में बिकने वाला मांस हमेशा बिना हड्डी का और अचार में डूबा होता था, जिसे वह स्किनलेस पिकल्ड पोर्क कहता था। लोग इसे सस्ता और स्वादिष्ट मानते थे, खासकर उस समय जब युद्ध के बाद खाने की कमी थी। डेन्के की दयालुता के कारण कोई उस पर शक नहीं करता था। वह बेघर लोगों, यात्रियों और जेल से छूटे हुए लोगों को अपने घर बुलाता था, उन्हें खाना और रहने की जगह देता था। लेकिन असल में, डेन्के का घर एक खौफनाक कसाईखाना था। जो लोग उसके घर में पनाह लेने आते थे, वे ज्यादातर कभी बाहर नहीं निकल पाते थे। डेन्के उन्हें मार डालता था और उनके शरीर के साथ भयानक चीजें करता था। उसने अपने शिकार के मांस को अचार में डालकर बेचा, चमड़े से बेल्ट और फीते बनाए और हड्डियों को ठिकाने लगाया। उसकी ये हरकतें कई सालों तक चलीं और किसी को भनक तक नहीं लगी।
खौफनाक खुलासा

21 दिसंबर, 1924 को एक बेघर आदमी, विन्सेंज ओलिवियर, डेन्के के घर गया। डेन्के ने उसे 20 पफेनिग देकर एक पत्र लिखने को कहा। लेकिन जब ओलिवियर ने पत्र लिखना शुरू किया, तो डेन्के ने उस पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। ओलिवियर किसी तरह खून से लथपथ हालत में भाग निकला और सड़क पर चीखने लगा कि एक पागल आदमी ने उस पर हमला किया। पड़ोसियों ने पुलिस को बुलाया और डेन्के को गिरफ्तार कर लिया गया। शुरुआत में पुलिस को ओलिवियर की बात पर यकीन नहीं हुआ, क्योंकि डेन्के को शहर में सब एक नेक इंसान मानते थे। लेकिन एक जज ने मामले की गहराई से जांच का आदेश दिया। 22 दिसंबर, 1924 की रात को, डेन्के ने अपनी जेल की कोठरी में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसने अपने रूमाल या सस्पेंडर से फंदा बनाया, जिसके बारे में अलग-अलग कहानियां हैं। डेन्के की मौत के बाद, 24 दिसंबर को पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली। जो कुछ वहां मिला, वो किसी के लिए भी रोंगटे खड़े करने वाला था।


डेन्के के घर का भयानक मंजर

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पुलिस को डेन्के के घर में एक कसाईखाने जैसा सेटअप मिला। दो बड़े टबों में नमक के पानी में मानव मांस का अचार रखा हुआ था, जो बाद में टेस्टिंग में इंसानी मांस साबित हुआ। घर में 420 दांत, 480 हड्डियां, कई कटोरे में मानव चर्बी, खून से सने कपड़े और एक स्कर्ट मिली। दीवारों पर मानव चमड़े से बने बेल्ट, सस्पेंडर और जूतों के फीते टंगे हुए थे। डेन्के ने अपने शिकार के बालों से जूतों के फीते बनाए थे और हड्डियों को उबालकर ठिकाने लगाया था। उसने साबुन बनाने के लिए भी मानव चर्बी का इस्तेमाल किया था। पुलिस को डेन्के का एक लेजर (रजिस्टर) मिला, जिसमें उसने अपने 31 शिकारों के नाम, तारीख, उम्र और वजन लिखे थे। पहला शिकार 1903 में इदा लॉनर थी और आखिरी विन्सेंज ओलिवियर, जो बच निकला। हड्डियों और मांस की मात्रा को देखकर पुलिस ने अनुमान लगाया कि डेन्के ने कम से कम 42 लोगों को मारा होगा, हालांकि सटीक संख्या का पता नहीं चला।
डेन्के के अपराधों का तरीका

डेन्के का शिकार ज्यादातर बेघर लोग, यात्री और जेल से छूटे हुए लोग होते थे, जिन्हें कोई मिस नहीं करता था। वह उन्हें अपने घर खाने या पैसे का लालच देकर बुलाता था। घर में आने के बाद, वह कुल्हाड़ी से हमला करता, उनके शरीर को टुकड़ों में काटता और मांस को अचार में डालकर रखता। हड्डियों को उबालकर छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता। वह अपने शिकार के मांस को व्रोकला के बाजार में पोर्क के नाम पर बेचता था। उस समय युद्ध के बाद खाने की कमी थी, इसलिए लोग सस्ता मांस खरीदने के लिए टूट पड़ते थे। डेन्के ने अपने शिकार के चमड़े को सुखाकर बेल्ट, सस्पेंडर और फीते बनाए। उसने मानव बालों से जूतों के फीते और चर्बी से साबुन भी बनाया। उसका लेजर बताता है कि वह अपने अपराधों को बहुत सावधानी से रिकॉर्ड करता था। हर शिकार का नाम, तारीख और वजन लिखा जाता था, जैसे वह कोई बिजनेस डायरी हो।


डेन्के के अपराधों का असर

डेन्के के खुलासे ने लोअर सिलेसिया में हड़कंप मचा दिया। लोग इतने डर गए कि कई दिनों तक मांस खाना बंद कर दिया, जिससे कई स्थानीय मांस प्रोसेसिंग प्लांट बंद हो गए। 1924-25 की सर्दियों में, इस मामले की खबरों के बाद इलाके में पेट की बीमारियों की शिकायतें बढ़ गईं। लोग डर गए थे कि कहीं उन्होंने डेन्के का बेचा हुआ मांस तो नहीं खा लिया। डेन्के की कहानी इतनी डरावनी थी कि इसे कई सालों तक दबा दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध और अन्य सीरियल किलरों की खबरों के बीच ये कहानी भुला दी गई। 1970 के दशक में, डेन्के के पड़ोसी के बगीचे में मानव अवशेष मिले, जो शायद डेन्के के अपराधों का हिस्सा थे। इससे उसकी कहानी फिर से सुर्खियों में आई। जिएबित्से के म्यूजियम ऑफ हाउसहोल्ड गुड्स में डेन्के को एक छोटा सा कोना दिया गया है, जहां उसकी कहानी को प्रदर्शित किया गया है।


डेन्के के अपराधों के पीछे का मकसद

डेन्के के अपराधों का सटीक मकसद आज तक पता नहीं चला, क्योंकि उसने आत्महत्या कर ली और कोई पूछताछ नहीं हो सकी। लेकिन कुछ अनुमान लगाए गए हैं। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में भयानक आर्थिक संकट था। महंगाई इतनी थी कि लोग खाना तक नहीं खरीद पाते थे। शायद डेन्के ने इस स्थिति का फायदा उठाया और मांस बेचकर पैसे कमाए। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि डेन्के को नरभक्षण से एक बीमार मानसिक सुख मिलता था। उसका अपने शिकार को इतनी सावधानी से प्रोसेस करना ये दर्शाता है। डेन्के का कोई रोमांटिक रिश्ता या शराब की लत नहीं थी, जो उसे एक सामान्य सीरियल किलर से अलग बनाता है। उसका शांत और धार्मिक व्यक्तित्व उसके अपराधों को और रहस्यमयी बनाता है। कुछ लोग मानते हैं कि डेन्के ने बेघर लोगों को मारकर समाज को साफ करने की कोशिश की, लेकिन ये सिर्फ एक अनुमान है, क्योंकि उसने कभी अपने इरादे नहीं बताए।


डेन्के की कहानी का सांस्कृतिक असर

डेन्के की कहानी ने कई किताबों, पॉडकास्ट और फिल्मों को प्रेरित किया। 1980 में बनी फिल्म मोटेल हेल में एक किसान अपने शिकार को स्मोक्ड मीट में बदलता है, जो डेन्के की कहानी से मिलता-जुलता है। 2013 में लेखक लिडिया बेनेके ने डेन्के का मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल बनाया, जिसमें उसकी मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश की गई। जर्मन रॉक बैंड RPWL ने 2023 में अपने गाने एनदर लाइफ बियॉन्ड कंट्रोल में डेन्के का जिक्र किया, जिससे उसकी कहानी फिर से चर्चा में आई। जिएबित्से में आज भी डेन्के का घर मौजूद है, जो एक डरावनी याद के रूप में खड़ा है। स्थानीय लोग इसे भूतिया जगह मानते हैं। इस कहानी को व्रोकला यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में लुसिना बियाली ने फिर से खोजा, जिन्होंने 1920 के दशक की जर्मन प्रेस को पढ़कर इसके बारे में लिखा।


निष्कर्ष

कार्ल डेन्के की कहानी सिर्फ एक सीरियल किलर की कहानी नहीं है, बल्कि ये एक चेतावनी है कि इंसानी दिमाग कितना जटिल और खतरनाक हो सकता है। बाहर से दयालु और धार्मिक दिखने वाला डेन्के अपने घर में एक खौफनाक कसाईखाना चला रहा था, जहां उसने 40 से ज्यादा लोगों की जान ली और उनके मांस को अचार बनाकर बेचा। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने आसपास के लोगों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। साथ ही, ये हमें उस समय की आर्थिक और सामाजिक हालतों के बारे में भी बताती है, जब लोग भूख और गरीबी में ऐसे भयानक कदम उठाने को मजबूर हो गए। डेन्के की कहानी आज भी जिएबित्से के लोगों के लिए एक डरावना सपना है और हमें याद दिलाती है कि सच्चाई हमेशा वैसी नहीं होती, जैसी दिखती है।


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